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लोकप्रिय जनउभार के बाद 'उद्यमी विकास' के पोस्टर ब्वॉय मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख बने

यह आलेख 8 अगस्त 2024, को अंग्रेजी में छपे लेख After popular uprising: Muhammad Yunus, promoter of “entrepreneurial development,” to head Bangladesh’s emergency interim government का हिंदी अनुवाद है।

मोहम्मद यूनुस एक अर्थशास्त्री और डेवलपमेंट बैंकर हैं जिनके अमेरिका और अन्य साम्रज्यवादी शक्तियों से बहुत गहरे रिश्ते हैं। गुरुवार को एक समारोह में अब वो बांग्लादेश के आपात अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में शपथ लेने वाले हैं। 

तीन मार्च 2024 को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में मीडिया को संबोधित करते हुए मोहम्मद यूनुस। (एपी फ़ोटो/ महमूद हुसैन अपू) [AP Photo/Mahmud Hossain Opu]

अवामी लीग सरकार के ख़िलाफ़ लोकप्रिय जनउभार के बाद, लंबे समय से प्रधानमंत्री रहीं शेख़ हसीना, सोमवार को 17 करोड़ की आबादी वाले इस दक्षिण एशियाई देश को छोड़कर भाग गईं।

जुलाई की शुरुआत में छात्रों ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था। इसके जवाब में सरकार ने बर्बर दमन का सहारा लिया और आतंक निरोधी रैपिड एक्शन बटालियन को तैनात कर दिया, जिससे यह आंदोलन और भड़क गया और कामकाजी लोगों की एक बड़ी संख्या इसमें शामिल हो गई। 

रविवार को हुए अबतक के सबसे भारी खूनख़राबे के बाद छात्रों ने हसीना पर इस्तीफ़ा देने के दबाव बढ़ाने के लिए अगले दिन प्रधानमंत्री के आवास पर एक सामूहिक प्रदर्शन का आह्वान किया था। 

उनके इस्तीफ़े की घोषणा चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्टाफ़ जनरल वाकर-उज़-ज़मान ने राष्ट्र के संबोधन में किया। 

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, सेना ने हसीना को सोमवार को इस्तीफ़ा देने, प्रधानमंत्री आवास खाली करने और देश छोड़ कर सुरक्षित बाहर निकलने के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए 45 मिनट का समय दिया था। सेना हसीना के ख़िलाफ़ हो गई, वही हसीना, जिन्होंने पिछले 15 साल से देश पर राज किया था, क्योंकि सेना को लगा कि व्यापक लोकप्रिय विरोध को दबाने की उनकी कोशिशें बैकफ़ायर कर गई थीं और इसने संभावित साम्राज्यवादी पूंजीवादी शासन को अस्थिर कर दिया था। 

उसके बाद से ही, जनरल वाकर-उज़-ज़मान और नेवी और एयरफ़ोर्स के प्रमुखों ने राष्ट्रपति, स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन, पूंजीपतियों और तथाकथित नागरिक अधिकार समूहों के साथ कई दौर की लगातार मीटिंगें कीं।

छात्र प्रदर्शनों की अगुवाई के लिए हाल ही में बनाए गए स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन (एसएडी) के नेताओं ने एक दशक से पश्चिमी देशों में रह रहे 84 साल के नोबल पुरस्कार विजेता यूनुस को अंतरिम सरकार का मुखिया बनाने के लिए दबाव डाला। मंगलवार को एक फ़ेसबुक पोस्ट में शीर्ष एसएडी नेताओं में से एक आसिफ़ मोहम्मद ने एलान किया, 'डॉ. यूनुस में हमें पूरा भरोसा है।'

एसएडी नेताओं ने सार्वजनिक रूप से ये भी एलान किया कि सेना के शीर्ष नेतृत्व को लेकर अंतरिम सरकार के गठन को वे स्वीकार नहीं करेंगे, जिसका तख़्तापलट और तानाशाही शासन का एक लंबा खूनी इतिहास रहा है। लेकिन, इसकी बजाय वे सेना के साथ क़रीबी तालमेल बनाकर चलेंगे, जोकि फिलहाल सरकार गठन की प्रक्रिया की अगुवाई कर रही है। 

मंगलवार को एसएडी कार्यकर्ताओं ने ढाका में यातायात को संभालने का काम अपने हाथ में ले लिया। प्रदर्शन आंदोलनों को खून में डुबोने की बढ़चढ़ कर कोशिश करने वाली पुलिस, सत्ता से हसीना की बेदखली के बाद थानों से ग़ायब हो गई। प्रदर्शनकारियों का जनसमुद्र सड़कों पर उतरा और उसने प्रधानमंत्री के आवास, अन्य सरकारी इमारतों और अवामी लीग के प्रमुख समर्थकों के घरों और व्यवसायों पर हमला किया और उन्हें लूट लिया। पूरे देश भर में दर्जनों पुलिस थानों को आग के हवाले कर दिया गया। पुलिस एसोसिएशन का कहना था कि जबतक उनके सदस्यों की सुरक्षा की गारंटी नहीं की जाती तबतक वे 'हड़ताल' पर रहेंगे।

हसीना सरकार द्वारा सरकारी हिंसा करने के परिणास्वरूप 300 लोग मारे गए जनमें अधिकांश छात्र और अन्य प्रदर्शनकारी थे। इन हमलों को अवामी लीग के काडरों ने करवाया था। 

जब हसीना की सरकार का पतन हुआ तो यूनुस पेरिस में थे और वहां चल रहे ओलंपिक गेम्स के सलाहकार के रूप में काम कर रहे थे। बांग्लादेश लौटने से कुछ देर पहले ही फ़्रांस 24 को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने छात्र प्रदर्शनकारियों की सराहना की और हसीना सरकार को उखाड़ फेंकने को 'दूसरा मुक्ति दिवस' क़रार दिया। असल में वो 16 दिसम्बर 1971 की तारीख़ की ओर इशारा कर रहे थे जब मुक्ति वाहिनी की अगुवाई में विद्रोह और भारतीय सेना के हमले की सूरत में पाकिस्तान ने बांग्लादेश को अलग होने से रोकने के लिए सबकुछ जलाकर राख़ कर देने की अपनी नीति को त्याग दिया था। बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष में हसीना के पिता प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति थे और 1975 में एक सैन्य तख़्ता पलट के समय मारे जाने तक सरकार की अगुवाई की थी।

बुधवार को टेलीविज़न पर प्रसारित संबोधन में सैन्य प्रमुख जनरल वाकर-उज़ज़मान ने खुशनुमा लोकतांत्रिक मुहावरे को दुहराया। पूंजीवादी शासन के किले यानी इस सरकारी संस्थान के कमांडर इन चीफ़ ने एलान किया, 'मुझे पूरा भरोसा है कि वो (यूनुस) एक ख़ूबसूरत लोकतांत्रिक प्रक्रिया की ओर हमें लेकर जाएंगे और हमें इसका फ़ायदा मिलेगा।'

हसीना सरकार के दमन के आगे निडर खड़े रहे यूनिवर्सिटी छात्रों और एसएडी के नेताओें में यह व्यापक विश्वास था कि हसीना की सरकार को उखाड़ फेंकने के बाद बांग्लादेशी राज्य और इसकी संस्थाएं 'स्वतंत्र चुनाव' के मार्फ़त बुनियादी रूप से बदल जाएंगी, और अगर ज़रूरत पड़ी तो आगे प्रदर्शन होगा। यूनुस की अगुवाई में एक अंतरिम सरकार को इस दिशा में पहले गंभीर प्रयास के रूप में देखा गया।

पिछले महीने पुलिस द्वारा बर्बर तरीक़े से टॉर्चर किए जाने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए एसएडी संयोजक 26 साल के नाहिद इस्लाम ने घोषणा की कि, 'हमारे उद्देश्यों के लिए बहाए गए शहीदों के खून को हम कभी जाया नहीं होने देंगे। ज़िंदगी की सुरक्षा, सामाजिक न्याय और एक नया राजनीतिक तंत्र के अपने वादे के माध्यम से हम एक नया लोकतांत्रिक बांग्लादेश बनाएंगे।' 

वास्तविकता में अंतरिम सरकार एक दक्षिणपंथी पूंजीवादी सरकार होगी, जो मल्टीनेशनल गार्मेंट उद्योग के बड़े खिलाड़ियों, अन्य विदेशी निवेशकों और बांग्लादेशी पूंजीपतियों की आभारी होगी। इसका पहला काम व्यवस्था को पटरी पर लाना होगा और हसीना सरकार द्वारा पिछले साल आईएमएफ़ से किए गए 4.7 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज के समझौते के तहत खर्चों में कटौती के उपायों को जारी रखना होगा। 

यह, और जो भी सरकार आती है, चाहे चुनी हुई या बिना चुनी, वो उस हैरान कर देने वाली सामाजिक ग़ैरबराबरी को बनाए रखेगी, जोकि मौजूदा बांग्लादेश की पहचान है, जबकि पर्दे के पीछे सेना सारी शक्ति को नियंत्रित करेगी। 

तेज़ी से आर्थिक तरक्की की अगुवाई करने के लिए वर्ल्ड बैंक और अन्य अग्रणी बिज़नेस प्रकाशनों ने हसीना की व्यापक रूप से तारीफ़ की थी। हालांकि इस तरक्की का लगभग पूरा लाभ निवेशकों और बांग्लादेशी अमीर वर्ग की जेब में गया, ख़ास तौर पर अवामी लीग समर्थक याराना पूंजीपतियों को। वेल्थ-एक्स के एक अध्ययन में पाया गया कि 2010 से 2019 के बीच बांग्लादेश में 50 लाख डॉलर (58 करोड़ टका) की शुद्ध संपत्ति वाले व्यक्तियों की संख्या में हर साल 14 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई - जो दुनिया में सबसे अधिक वृद्धि दर है। जबकि दूसरी तरफ़ बांग्लादेशी गार्मेंट वर्कर दुनिया में सबसे अधिक शोषित मज़दूर हैं, जो हर महीने बमुश्किल 100 डॉलर (11,705 टका) कमा पाते हैं।

यूनुस पक्के तौर पर दक्षिणपंथी शख़्सियत हैं। वो एक अर्थशास्त्री और ग्रामीण बैंक के संस्थापक हैं और ग़रीबों के लिए चिंता ज़ाहिर करते हैं, लेकिन साम्राज्यवादी दमन और पूंजीवादी शोषण से पैदा हुई व्यापक ग़रीबी के हल के तौर पर वो 'उद्यमी विकास' की वकालत करते हैं। यह छोटे छोटे कर्ज़ लेने वाले छोटे व्यवसायों को बढ़ावा देता है। उनकी अवधारणाओं को बड़ी वित्तीय संस्थाएं संस्थाएं हूबहू नकल करती रही हैं, आलोचकों के अनुसार, नतीजतन यह एक किस्म का कर्ज़ बंधक पैदा करता है।

यूनुस की ख्याति पश्चिमी देशों में एक नायक जैसी है। नोबल शांति पुरस्कार जीतने के अलावा, 2009 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा द्वारा उन्हें अमेरिकी प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ़ फ़्रीडम अवॉर्ड और 2010 में यूएस कांग्रेसनल गोल्ड मेडल भी दिया गया। 

अमेरिका अधिकारियों ने बड़ी फुर्ती से मौजूदा संकट में सेना की भूमिका की सराहना की और यूनुस सरकार की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार के साथ काम करने की इच्छा जताई। इसमें कोई शक नहीं कि वॉशिंगटन को उम्मीद है कि वो यूनुस से अपने लंबे संबंध का इस्तेमाल कर बांग्लादेश को चीन से दूर करने में क़ामयाब होगा। बीजिंग के ख़िलाफ़ अमेरिका की चौतरफ़ा सैन्य रणनीतिक आक्रामकता का यह हिस्सा है। 

यूनुस, सेना और प्रतिक्रियावादी बांग्लादेशी राज्य का भ्रम छात्रों के बीच इतना हावी है कि यह स्टालिनवाद की घातक राजनीतिक भूमिका से जुड़ा है। दशकों से विभिन्न स्टालिनवादी पार्टियां अवामी लीग और इसकी धुर विरोधी बांग्लेदश नेशनलिस्ट पार्टी के ईर्द गिर्द चक्कर लगाती रही हैं। एक तरफ़ वो लाल झंडा लहराती हैं तो दूसरी तरफ़ पूंजीवाद के ख़िलाफ़ ग्रामीण मेहनतकशों को एकजुट करने और मज़दूरों की सत्ता और समाजवाद के संघर्ष में एक स्वतंत्र राजनीतिक ताक़त के रूप में मज़दूर वर्ग की व्यापक लामबंदी के ख़िलाफ़ दुश्मनाना रुख़ रखती हैं। 

स्वेटशॉप मज़दूरी, व्यापक बेरोज़गारी और राजनीतिक दमन को लेकर मज़दूर वर्ग में बड़े पैमाने पर ग़ुस्सा है। लेकिन यूनियनों ने, चाहे स्टालिनवादी नेतृत्व वाली हों या नहीं, अपने खुद के हितों पर जोर देने और बांग्लादेशी पूंजीवाद को चुनौती देने के लिए, एक्शन कमेटियों के निर्माण के माध्यम से हड़तालों और अन्य वर्ग-संघर्ष के तरीकों का उपयोग करके, मज़दूर वर्ग को बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी आंदोलन में हस्तक्षेप करने से रोकने का प्रयास किया। 

इस बीच अवामी लीग और इसकी सहयोगी, ख़ास तौर पर इस्लामी सांप्रदायिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी की बदनामी का फ़ायदा उठाते हुए बीएनपी संभावित चुनावों में सत्ता तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। 

बुधवार को बीएनपी ने ढाका में अपने मुख्यालय के बाहर एक रैली आयोजित की जिसमें दसियों हज़ार लोगों ने हिस्सा लिया। इस रैली को बीएनपी की नेता और पूर्व प्रधानमंत्री ख़ालिदा ज़िया और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष उनके बेटे तारिक़ रहमान ने संबोधित किया। 

सोमवार तक 78 साल की बीमार ज़िया भ्रष्टाचार के आरोपों में 2018 से ही जेल के अंदर बंद थीं। रहमान ने लंदन से भाषण दिया, जहां वो अवामी लीग के सत्ता में आते ही भाग गए थे। अपने भाषण में रहमान ने तीन महीने के अंदर चुनाव कराए जाने की मांग की और दावा किया कि बीएनपी असल लोकतांत्रिक शासन देगी। हालांकि अगले ही सांस में उन्होंने कहा कि बीएनपी सरकार एक उच्च सदन की स्थापना करेगी, जिसमें एक्सपर्ट शामिल किए जाएंगे जिनका 'राजनीति से कोई नाता नहीं' होगा। हालांकि उन्होंने इस बारे में कोई और जानकारी नहीं दी, लेकिन यह प्रस्ताव स्पष्ट रूप से संसद और जनता की मर्ज़ी से चुनी गई सरकार का अपमान करने वाला है और अपना एजेंडा थोपने के लिए यह पूंजपतियों को एक वैकल्पिक व्यवस्था प्रदान करने वाला है। 

हाल के दिनों में बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यकों पर भी हिंसक हमले हुए हैं। इसके जवाब में एसएडी ने हिंदू मंदिरों की रक्षा के लिए छात्र वालंटियरों को एकजुट किया है। बीएनपी और अन्य पार्टियां, जिनमें जमात-ए-इस्लामी भी शामिल है, ने भी सार्वजनिक रूप से इन हमलों की निंदा की है। 

इन घोषणाओं पर कोई भरोसा नहीं करना चाहिए। भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका की तरह ही बांग्लादेश में साम्प्रदायिक हमलों को, सत्ताधारी वर्ग द्वारा सबसे प्रतिक्रियावादी लाइन के तहत सामाजिक ग़ुस्से को भटकाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। 

बांग्लादेश में सरकारी दमन, ग़रीबी और बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी से क्षुब्ध मज़दूरों और नौजवानों के सामने सबसे अहम मुद्दा ये पहचानना है कि उनके लोकतांत्रिक और सामाजिक प्रयास केवल सामाजिक समानता की लड़ाई के माध्यम से ही साकार होंगे। पूंजीवादी शासक वर्ग के धन और विशेषाधिकार पर सीधा हमला किया जाना चाहिए और सामाजिक-आर्थिक जीवन को पुनर्गठित किया जाना चाहिए, ताकि निजी लाभ नहीं, बल्कि सामाजिक आवश्यकता ही प्रेरक सिद्धांत बने। इस संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए स्थायी क्रांति की ट्रॉट्स्कीवादी रणनीति के आधार पर मज़दूर वर्ग की एक जन क्रांतिकारी पार्टी के निर्माण की आवश्यकता है।

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