यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के “Stalinist-led CITU orders end to Samsung India strike leaving 23 suspended workers in the lurch” जो 27 मार्च 2025 को प्रकाशित हुआ थाI
500 परमानेंट वर्करों की महीने भर लंबी चली जुझारू हड़ताल को स्टालिनवादी अगुवाई वाली सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) द्वारा अचानक ख़त्म कराए जाने के बाद, सैमसंग इंडिया ने तमिलनाडु में अपने घरेलू उपकरण मैन्युफ़ैक्चरिंग प्लांट में वर्करों के ख़िलाफ़ उत्पीड़न अभियान को और तेज़ कर दिया है।
हड़ताल ख़त्म करने के अपने फैसले पर किसी तरह की वोटिंग कराए बिना और, मनमर्ज़ी और बदला लेने की मंशा से निलंबित किए गए 23 वर्करों को कंपनी द्वारा बिना तत्काल बहाली के आश्वासन के ही, सीटू ने सात मार्च को वर्करों को अपने धरने को ख़त्म करने का आदेश दिया। जबकि इस हड़ताल का मुख्य मुद्दा निलंबन ही था।
इस विश्वासघात से उत्साहित होकर दक्षिण कोरिया की मल्टीनेशनल कंपनी, परमानेंट वर्करों के साल 2024 के लिए सालाना बोनस को देने से इनकार कर रही है और जुझारू वर्करों को प्लांट के भीतर ही कठिन कामों पर ट्रांसफ़र कर रही है।
स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) से संबद्ध सीटू ने हड़ताल को जल्दी ही ख़त्म करा दिया, क्योंकि चेन्नई के बाहर जहां सैमसंग इंडिया का प्लांट स्थित है, वहां मज़दूरों के बीच इस हड़ताल के प्रति समर्थन बढ़ रहा था।
स्टालिनवादी इस बात से डर गए कि यह हड़ताल, बड़े पैमाने पर मज़दूर वर्गीय आंदोलन को भड़कने का कारण बन सकती है, जिससे कि हालात जल्द ही उनके नियंत्रण के बाहर जा सकता है। बेशक, हड़ताल को दबाने के लिए उन पर उनके राजनीतिक सहयोगी, तमिलनाडु के डीएमके की अगुवाई वाली राज्य सरकार की ओर से भारी दबाव आ गया था।
सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन (एसआईडब्ल्यूयू) को मान्यता दिलाने और अपनी कई शिकायतों को दूर करने वाले सामूहिक समझौते को सुरक्षित करने के लिए परमानेंट वर्करों के लगभग एक साल लंबे संघर्ष के दौरान, डीएमके ने सैमसंग प्रबंधन का पूरा समर्थन किया। डीएमके ने सैमसंग वर्करों के ख़िलाफ़ बारबार पुलिसिया हिंसा करवाई और महीनों तक श्रम विभाग, एसआईडब्ल्यूयू को मान्यता देने से इनकार करता रहा, जबकि भारतीय संविधान के तहत यूनियन पंजीकरण एक संवैधानिक अधिकार है।
जुलाई 2024 में अपनी खुद की पहलकदमी पर वर्करों ने एसआईडब्ल्यूयू के बनने के तुरंत बाद ही, इसे सीटू से संबद्ध करा दिया था, इस ग़लतफ़हमी में कि तानाशाही सैमसंग मैनेजमेंट के ख़िलाफ़ लड़ाई को इससे मजबूती मिलेगी।
इसकी बजाय, सीटू ने व्यवस्थित तरीक़े से सैमसंग वर्करों के संघर्ष को अलग थलग कर दिया और, जैसा कि इसकी पुरानी आदत है, उसने सुरक्षित और अच्छे वेतन वाली नौकरी पाने के अपने अधिकार के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने के लिए ठेका और ट्रेनी वर्करों से समर्थन की अपील न करके, वर्करों के बीच विभाजनकारी वर्गीकरण पैदा करने के मैनेजमेंट की कोशिशों को चुनौती देने से अपने कदम पीछे ले लिये।
नतीजा ये हुआ कि, चार सप्ताह तक चली हड़ताल के दौरान कंपनी, टेंपरेरी वर्करों का इस्तेमाल करते हुए अपने उत्पादन को जारी रखा और अतिरिक्त अस्थाई वर्करों को भर्ती करती रही जिसमें यह धमकी छिपी हुई थी कि हड़ताली वर्करों की जगह दूसरे टेंपरेरी वर्करों को रख लिया जाएगा।
पांच फ़रवरी को यह हड़ताल तब शुरू हुई जब एसआईडब्ल्यूयू के तीन यूनियन नेताओं के निलंबन के विरोध में वर्करों ने काम बंद कर दिया। ये निलंबित नेता खुद ही रैंक एंड फ़ाइल वर्कर हैं, जिन्होंने कंपनी के दक्षिण कोरियाई प्रबंधन के एक अधिकारी से मिलने की मांग की थी, ताकि वे वर्करों, ख़ास तौर पर यूनियन समर्थक वर्करों पर मैनेजमेंट के लगातार उत्पीड़न का विरोध दर्ज करा सकें।
बाद में हड़ताल तोड़ने की कोशिश के तहत कंपनी ने 20 अन्य वर्करों को भी निलंबित कर दिया।
इस ताज़ा उकसावे वाली कार्रवाई के बाद, प्रदर्शनकारियों की ओर से दबाव के चलते सीटू ने घोषणा की कि वह दो सप्ताह बाद इन वर्करों के समर्थन में 13 मार्च को कांचीपुरम ज़िले में अन्य प्लांटों के सामने एक दिन का विरोध प्रदर्शन करेगी। इसके बाद दर्जनों प्लांटों के वर्करों ने इसमें शामिल होने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की। हालांकि, सीटू और सीपीएम ने ये सुनिश्चित किया कि यह हड़ताल 13 मार्च से पहले ही समाप्त हो जाए। वर्ग संघर्ष को दबाने और मज़दूर वर्ग को डीएमके और अन्य दक्षिणपंथी बुर्जुआ पार्टियों का पिछलग्गू बनाने के स्टालिनवादियों के दशकों पुराने इतिहास को देखते हुए इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
काम पर वापस लौटने का एलान करते हुए, सीटू के ज़िला सचिव मुथुकुमार, जोकि एसआईडब्ल्यूयू के प्रमुख प्रवक्ता भी हैं, उन्होंने दावा किया कि चूंकि सैमसंग ने हड़ताली वर्करों की आईडी कैंसिल करने के अपने फैसले को वापस ले लिया था और हर वर्कर से 'माफ़ीनामा' देने की अपनी मांग को भी छोड़ दिया था, इसलिए यह एक महान जीत हासिल हुई है।
जीत के स्टालिनवादी दावे झूठे साबित हुए, ठीक उसी तरह जैसा तब हुआ था जब मुथुकुमार ने पिछली बार सैमसंग वर्करों की हड़ताल को एकतरफ़ा ख़त्म कराया था। अब 23 निलंबित वर्कर, मैनेजमेंट के अनुशासनात्मक कार्यवाही के बहाने कंपनी की ओर से बदले की मंशा से किए जा रहे उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं और हड़ताल करने वाले सभी वर्करों को परेशान किया जा रहा है।
सैमसंग वर्करों के संघर्ष को विफल करने के बाद स्टालिनवादी मुथुकुमार ने 21 मार्च को एक फ़ेसबुक पोस्ट में शिकायत की थी कि “आसान और शांतिपूर्ण रिश्ते“ बनाए रखने के लिए सीटू के पीछे हटने के बाद भी मैनेजमेंट लगातार वर्करों के प्रति खुले तौर पर दुश्मनाना रुख़ जारी रखे हुए है।
इसी पोस्ट में उन्होंने प्रबंधन के कई दुश्मनाना क़दमों के बारे में विस्तार से बताया। सालाना बोनस रोकने के अलावा, प्रबंधन लगातार कर्मचारियों पर एसआईडब्ल्यूयू के बदले अपनी बनाई हुई जेबी “वर्कर्स कमेटी” में शामिल होने का दबाव बना रहा है।
हड़ताल में भाग लेने वाले वर्करों को अक्सर ऐसे कामों में स्थानांतरित किया जा रहा है जो अधिक कठिन हैं या जिनके लिए उन्हें उचित ट्रेनिंग नहीं मिली है। कुछ महिला वर्करों को अलग-अलग विभागों में फिर से नियुक्त किया गया है, जहाँ उन्हें भारी सामान संभालने के लिए मजबूर किया जाता है। वर्करों को 'ट्रेनिंग सेशन' से गुजरने के लिए भी मजबूर किया जा रहा है, जहां कंपनी के मैनेजर उन्हें परेशान करते हैं और डराने की कोशिश करते हैं।
सैमसंग वर्करों के साथ सीटू का विश्वासघात, पूंजीवादी राजनीतिक सत्ता तंत्र के एक अभिन्न अंग के रूप में स्टालिनवादी सीपीएम की भूमिका के अनुरूप है, जो मज़दूर वर्ग को भ्रमित करने और उन्हें बांटने के लिए 'वामपंथी', यहां तक कि 'कम्युनिस्ट' होने का ढोंग करती है।
सीपीएम डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) पार्टी की करीबी सहयोगी है और उसके साथ उसका राजनीतिक रूप से घनिष्ठ संबंध है। डीएमके सीपीएम को भारी वित्तीय सहायता प्रदान करती है। जहां तक इसकी और इसकी स्टालिनवादी सहयोगी पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की भारत की राष्ट्रीय संसद में मौजूदगी बनी हुई है, यह काफ़ी हद तक डीएमके के साथ गठबंधन के चलते संभव हुआ है। डीएमके ने 2019 के राष्ट्रीय चुनावों में सीपीएम के चुनाव प्रचार को 10 करोड़ रुपये की फ़ंडिंग की थी।
सीपीएम ने लंबे समय से डीएमके को एक धर्मनिरपेक्ष और “प्रगतिशील” पार्टी के रूप में प्रचारित किया है, जबकि तमिलनाडु में डीएमके की नीतियां उद्योग परस्त हैं। सीपीएम और डीएमके दोनों ही इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस) के प्रबल समर्थक हैं। इसका नेतृत्व कांग्रेस पार्टी करती है, जो हाल तक भारतीय पूंजीपति वर्ग की राष्ट्रीय सरकार की पसंदीदा पार्टी हुआ करती थी।
केवल इसी संदर्भ में सीटू द्वारा न केवल सैमसंग वर्करों, बल्कि कांचीपुरम औद्योगिक क्षेत्र के वर्करों के साथ बार-बार किए गए विश्वासघात को समझा जा सकता है।
हाल ही में हुई हड़ताल को वापस लेने की घोषणा के बाद, मुथुकुमार ने वर्करों को मैनेजमेंट के मनमानेपन को सहन करने की नसीहत दी थी। उन्होंने कहा था, 'अगर मैनेजमेंट आपके साथ दुर्व्यवहार करता है, तो उस पर जवाब न दें; अपना काम करें और कड़ी मेहनत करें। प्रशिक्षक या प्रबंधन आपसे कैसे बात करता है, इसकी चिंता न करें। बस इसे अनदेखा करें।'
मुथुकुमार ने श्रमिकों को सभी स्वतंत्र पहल को छोड़ने और सीटू तंत्र के आदेशों का आँख मूंदकर पालन करने के लिए धमकाया। उन्होंने आदेश दिया, 'अपने बारे में मत सोचो, अगर कोई समस्या है तो हमें बताओ, और हम उसे संभाल लेंगे। लेकिन हमारे द्वारा तय किए गए हद से आगे मत बढ़ो।' इस तरह की बयानबाज़ी बताती है कि सीटू की नौकरशाही और काम करने का उसका कारपोरेट परस्त रुख़, मैनेजमेंट के साथ साठगांठ को उजागर करता है और स्टालिनवादी नौकरशाहों की उन वर्करों के प्रति दुश्मनी और उनसे डर जाने का सबूत है, जिनकी अगुवाई करने का वे दावा करते हैं।
सैमसंग वर्करों के संघर्ष को स्टालिनवादियों द्वारा अलग-थलग करने और दबाने का लाभ उठाते हुए और डीएमके के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के अधिकारियों से मिले समर्थन से उत्साहित होकर, कंपनी ने अपने अड़ियल रुख़ को और तेज़ कर दिया है। उसने वर्करों की शिकायतों पर एसआईडब्ल्यूयू के साथ बातचीत करने से साफ़ इनकार कर दिया है। इनमें ख़राब वेतन, लंबे काम के घंटे, दयनीय कामकाजी परिस्थितियाँ और कठोर और मनमाना अनुशासन व्यवस्था शामिल है, जहाँ वर्करों को दुर्व्यवहार और असुरक्षित हालात का विरोध करने के लिए नियमित रूप से दंडित किया जाता है।
एसआईडब्ल्यूयू के तीन पदाधिकारियों का उकसावे वाला निलंबन, श्रम विभाग द्वारा मजबूरी में यूनियन को आधिकारिक रूप से पंजीकृत किये जाने के मात्र 9 दिन बाद हुआ।
सीपीएम की मज़दूर विरोधी राजनीति पड़ोसी राज्य केरल में भी साफ़ तौर पर दिखाई देती है, जहाँ स्टालिनवादी राज्य सरकार में हैं। 26,000 से ज़्यादा ग्रामीण सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मचारी, जिन्हें आम तौर पर आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) के नाम से जाना जाता है, पिछले एक महीने से हड़ताल पर हैं और 21,000 रुपये प्रति महीने के रहने लायक वेतन और पेंशन लाभ की मांग कर रही हैं। हालाँकि, कारपोरेट समर्थक मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के नेतृत्व वाली स्टालिनवादी सरकार हड़ताल के प्रति दुश्मनाना रुख़ अपनाए हुए है, और कर्मचारियों से कह रही है कि राज्य के पास ऐसी बुनियादी माँगों को पूरा करने के लिए भी पैसे नहीं हैं।
सैमसंग के वर्करों का अनुभव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन कर्मचारियों के अनुभवों को दर्शाता है, जो पहले से कहीं ज़्यादा क्रूर कामकाजी हालात का सामना कर रहे हैं और ऐसी ट्रेड यूनियनों से उनका पाला पड़ा है, जो प्रबंधन के एजेंट के रूप में काम करती हैं। सैमसंग के वर्करों ने सैमसंग के निरंकुश प्रबंधन का विरोध करने में अविश्वसनीय दृढ़ संकल्प दिखाया है और बड़ी कुर्बानियां दी हैं, लेकिन उनके संघर्ष को नाकाम कर दिया गया है।
इसलिए सैमसंग के वर्करों को सीटू से निर्णायक रूप से अलग हो जाना चाहिए और एक स्वतंत्र रैंक-एंड-फ़ाइल कमेटी की स्थापना करके अपने संघर्ष को अपने हाथ में ले लेना चाहिए। ऐसी कमेटी को भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परमानेंट, कांट्रैक्ट, अस्थायी वर्करों और अन्य सैमसंग वर्करों को एकजुट करना चाहिए। उन्हें पूरे विशाल कांचीपुरम औद्योगिक क्षेत्र में, पूरे भारत में और उसके बाहर भी अपने भाई-बहन वर्करों के साथ ठोस संबंध भी स्थापित करने चाहिए।
केवल वर्ग संघर्ष और समाजवादी अंतरराष्ट्रीयता में निहित ऐसा आंदोलन ही सैमसंग जैसे बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा क्रूर शोषण का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सकता है।